Thursday, July 3, 2014

"नारी होने का है अभिशाप"

नारी कि ये दुर्गत
उसके मार्मिक हृदय का तौफा है
या फिर उसकी कमज़ोरी कि निशानी
उसके देह के वैभव कि लूट है
या उसकी मूर्खता का काला चित्रण
उसकी सहनशीलता है...उसका प्रेम है....
उसका समर्पण है.....मासूमियत है 
उसकी चूक है या फिर उसका मूक होना
बार-बार होती हैं तार-तार
कभी उसके सपने...
कभी खवाइश...तो कभी अस्मत..
परोस जाती है वो देह व्यापार में
कभी रिश्तो में बंध....तो कभी प्यार में.....
त्रिस्कृत होती हैं
कभी अपनी कुरूपता के कारण
कभी विधवा होने पर....
तो कभी वैश्य होने पर
उन्हें सामाजिक तौर पर नाकारा जाता है
मगर फिर भी नहीं घटता
उसको भोगने कि लालसा में
पुरुषो का जमघट उसके दर से
आखिर ये कैसी 
नारी कि अग्नि परीक्षा का अध्याय है 
सदियों से लिखा जा रहा है
बस इसके किरदार बदलते रहते हैं
कभी इसमें सीता जलती है
अपनी पाकीज़गी को सिद्ध करने के लिए ..
कभी अहल्या छली जाती है
और फिर पत्थर होने का अभिशाप पाती है
कभी हार दिया जाता है खेल में
सम्मान द्रोपदी का........
कभी दामिनी.........कभी यामिनी..
कभी मैं.............कभी तू......
कानो में पड़ता है शब्दों का जलता कोयला
तो कभी तन पे डाला जाता है तेज़ाब
कौन से कमाएं है मेरे अस्तित्व ने पाप
या फिर ये केवल नारी होने का है अभिशाप

 ________परी ऍम 'श्लोक'

4 comments:

  1. कभी दामिनी.........कभी यामिनी..
    कभी मैं.............कभी तू......
    कानो में पड़ता है शब्दों का जलता कोयला
    तो कभी तन पे डाला जाता है तेज़ाब
    कौन से कमाएं है मेरे अस्तित्व ने पाप
    या फिर ये केवल नारी होने का है अभिशाप
    एक एक शब्द तीखा लेकिन सच ! आइना दिखाती रचना ! साधुवाद

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  2. कभी हार दिया जाता है खेल में
    सम्मान द्रोपदी का........
    कभी दामिनी.........कभी यामिनी..
    कभी मैं.............कभी तू......
    कानो में पड़ता है शब्दों का जलता कोयला
    तो कभी तन पे डाला जाता है तेज़ाब
    कौन से कमाएं है मेरे अस्तित्व ने पाप
    या फिर ये केवल नारी होने का है अभिशाप
    बहुत ही भावपूर्ण

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  3. त्रिस्कृत होती हैं
    कभी अपनी कुरूपता के कारण
    कभी विधवा होने पर....
    तो कभी वैश्य होने पर
    उन्हें सामाजिक तौर पर नाकारा जाता है
    मगर फिर भी नहीं घटता
    उसको भोगने कि लालसा में
    पुरुषो का जमघट उसके दर से
    सार्थक सृजन।।। समाज को आइना दिखाती रचना

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  4. Dhero aabhar rachna pe tipanni hetu....

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