Monday, July 14, 2014

वहीँ हूँ मैं आज भी.........!!

लड़ी है मैंने भी एक जंग
मेरे अपने हृदय से
किया है संघर्ष
बहुत मुश्किल था
मेरे लिए भी वो दौर
कटे थे उन दिनों
एक घड़ी में
कई हज़ार लम्हे  
थम गयी थी मैं भी
शून्यकाल का वो दौर
मुझसे भूला नहीं जाता
सोचती थी मैं अक्सर
शक्ल क्या होगी जिंदगी कि
तुम्हे खोकर
संभवत:
बर्फ सी जम ही जाउंगी मैं
तुम्हारा साथ
एक ओर मज़बूत कर रहा था मुझे
दूसरी ओर शक्तिहीन
पर तुम्हारे बाद
संघर्ष बन गया सब कुछ
यहाँ तक ही मेरी हर इक सांस
अहसासों के जिस चक्रव्हीव में
मैं फस गयी थी
उससे बाहर आने का रास्ता
कदाचित मेरे पास भी नहीं था
खैर
ऐसे ही कभी सुबह हुई
कभी शाम ढली
तो कभी रात ने सब ढक दिया
हाँ!
बेशक रुकी नहीं हैं जिंदगी
किन्तु ये युद्ध भी विराम में नहीं है
चल रहा है रुक-रुक कर
यादो कि बाण से पीड़ा उठा देता है
इस युद्ध ने जीवित छोड़ दिया है मुझे
किन्तु लंगड़ा बनाकर
और मैं
इस अपाहिज जिंदगी को
कोई न कोई वजह कि बैसाखी देकर
चलने के लिए प्रेरित करती हूँ
आज भी !!


---------------परी ऍम 'श्लोक'

2 comments:

  1. बेशक रुकी नहीं हैं जिंदगी
    किन्तु ये युद्ध भी विराम में नहीं है
    चल रहा है रुक-रुक कर
    यादो कि बाण से पीड़ा उठा देता है
    इस युद्ध ने जीवित छोड़ दिया है मुझे
    किन्तु लंगड़ा बनाकर
    और मैं
    इस अपाहिज जिंदगी को
    कोई न कोई वजह कि बैसाखी देकर
    चलने के लिए प्रेरित करती हूँ
    आज भी !!

    क्या बात है ! बहुत दमदार प्रस्तुति

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  2. बेशक रुकी नहीं हैं जिंदगी
    किन्तु ये युद्ध भी विराम में नहीं है
    चल रहा है रुक-रुक कर
    यादो कि बाण से पीड़ा उठा देता है
    इस युद्ध ने जीवित छोड़ दिया है मुझे! सुंदर प्रस्तुति साभार!

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