Wednesday, June 4, 2014

"दूरियाँ"

पास है तू मेरे
मैं भी तेरे समीप हूँ
किन्तु फिर भी हम अलग
मिटेंगी नहीं ये दूरियाँ
इक दूसरे को रस्सी से
गतर के बांधने पर भी...

कितना बोलूं कुछ भी कहूँ
चाहे तन भी साँझा करलूँ
वो शब्द कहूँ तुम्हे
जो तुम सुनो और शायद झूम उठो...
किन्तु कैसे पाटू मैं ?
तेरे मेरे बीच की गहरी खायी
मुट्ठी भर भी नहीं है वो प्रणय भाव
बस आदत है मुझे तेरी...तुझे मेरी...
 
हम रिश्तो की नदी के
दो छोरो पे खड़े रह सकते हैं
मिलन तब तक संभव नहीं होगा
मन का सेतु....
जब तक नहीं बांधा जाएगा !!


रचनाकार : परी ऍम "श्लोक"

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