Sunday, June 1, 2014

बाँटा सा क्यूँ हूँ ??

यहाँ महफ़िल वहां पर शोर मगर तनहा सा क्यूँ हूँ ?
वजह तू है..मैं हूँ या फिर कुछ और इतना खफा सा क्यूँ हूँ ?

नहीं आया नज़र मैं खुदको भी इतना धुंधला सा क्यूँ हूँ ?
तेरा चेहरा तेरी तस्वीर तेरा आईना सा क्यूँ हूँ ?

हज़ारो किस्से हैं सीने में मगर बेजुबां सा क्यूँ हूँ
तुझसे रिश्ता न तुझसे वाकिफ फिर तुझमे खोया सा क्यूँ हूँ ?

बेखुदी में करे होश में तोड़े वही वादा सा क्यूँ हूँ ?
कोई पढ़े कोई फाड़े ऐसा कायदा सा क्यूँ हूँ ?

बिन सरगम बिना एहसास कोई नगमा सा क्यूँ हूँ ?
अपनी चाहत और ख्वाबो से इतना जुदा सा क्यूँ हूँ ?

तू नही मेरा गर जो 'श्लोक' फिर मैं आधा सा क्यूँ हूँ ?
तुझी में हसीन दुनियाँ अक्सर पाता सा क्यूँ हूँ ?

अगर मैं हूँ मुकम्मल तो बता मुझको 'श्लोक'
मैं कुछ मुझमे.. कुछ तुझमे.... बाँटा सा क्यूँ हूँ ?

ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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