चलूँ मैं और
पाँव तले हो
जलती हुई दूब..
सर पे लदा हो पाथर
अनचाहे हादसे
सुई चोभये...
पीड़ा के धागे सिल दे देह...
जो चाहूँ बिसर जाए
सफलता मुट्ठी से फिसल जाए
हर बार चोट जख्म दुःखाये
मुरझा जाए सपनो कि बेल
गर्म हवाओ के थपेड़ो से...
हर लम्हा बागी हो
आती-जाती साँसे फांसी हो जाए
खंडर हो जाए मुस्कान
लेकिन
उस पल भी मैं जीना चाहूंगी...
और पूरी शशकता के साथ
देखना चाहूंगी
अपने हौसले के सामने
मुश्किलो को अपने कदमो पे
नाक रगड़ता हुआ !!!
रचनाकार: परी ऍम 'श्लोक'
पाँव तले हो
जलती हुई दूब..
सर पे लदा हो पाथर
अनचाहे हादसे
सुई चोभये...
पीड़ा के धागे सिल दे देह...
जो चाहूँ बिसर जाए
सफलता मुट्ठी से फिसल जाए
हर बार चोट जख्म दुःखाये
मुरझा जाए सपनो कि बेल
गर्म हवाओ के थपेड़ो से...
हर लम्हा बागी हो
आती-जाती साँसे फांसी हो जाए
खंडर हो जाए मुस्कान
लेकिन
उस पल भी मैं जीना चाहूंगी...
और पूरी शशकता के साथ
देखना चाहूंगी
अपने हौसले के सामने
मुश्किलो को अपने कदमो पे
नाक रगड़ता हुआ !!!
रचनाकार: परी ऍम 'श्लोक'
परी ऍम 'श्लोक जी ... अति सुंदर अहसास .....प्रस्तुति भी प्रशंस्नीये ....इसी तरह लेखनी से विस्तार करते रहिएगा......
ReplyDeleteJi bilkul koshishein zaari rahengi.......... Aapke pasand k liye aabhaar aapka ........
ReplyDelete