Thursday, June 5, 2014

"प्रेम वन में"

पाजेब में मोरे घुंघरू हज़ार
मगर बाजे न बाजे न
कलाई में चूड़ी कांच
मगर बाजे न बाजे न
ये सोलह श्रृंगार तन पे
मोरे साजे न साजे न
न रात सोये चैन से
दिन मोरा जागे न जागे न
मन को दूँ लाख तिलासा
मगर पागल माने न माने न
दूजा चेहरा सिवा तोहरे कोई 
पहचाने न जाने न......
लगन लागि जबसे मोहे तेरी
हर गली-कूंचे मा तोहका हेरी
बरखा सावन बीते विरह में
भाये न बिन तोहरे पाख उजेरी
फूल-पात..झरना..पर्वत..
कोई नज़ारा नयन को
मोह पाये न पाये न
तोहरा सुध दिमाग के ताखा से
निकल कहीं भी जाए न जाए न
अइसन फिरू मैं बन दीवानी
छलके नयन का पियूं पानी
पर तोहरे अमल से
बाहर निकल पाऊ न पाऊ न
प्रेम वन में भटक गयी मैं
रास्ता बोले घर अब जाऊं न जाऊं न !!


गीतिकाव्य लेखन By: परी ऍम 'श्लोक'

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