भय लगता है....
उस पल भी
जब कोई गली से गुजरता राही
बहन कहके पुकारता है मुझे....
कोई बूढ़ा व्यक्ति
अपनी मदद को...
बेटी कहके सम्बोधित करता है...
उस वक़्त मैं झांकती हूँ ...
उसके चहरे की ओर..
उसके भावो को पढ़ने का
प्रयास करने लगती हूँ....
किन्तु असफल रहती हूँ
इतनी बड़ी ज्ञाता नहीं मैं...
कि मुख पढ़
किसी मन में चल रहे
विचारो को जान सकूँ....
अच्छा था...
जिस पल नादान थी मैं...
जबसे देखने लगी हूँ समाचार..
पढ़ने लगी हूँ अख़बार...
सामना करने लगी हूँ...
ऐसे असहनीय माहौल का..
तबसे उठते हैं कई सवाल
किसी के एक सवाल पे....
लेकिन फिर भी
मुझमे बैठी ये औरत.......
कमज़ोर बना देती है मुझे !!!!
रचनाकार : परी ऍम "श्लोक"
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