Thursday, June 5, 2014

"करनी"

मिटे न बीत का चित्रण
कल से आज गढ़ा न जाए
आज के हाथ कल की रचना
सोच समझ कय लिखते जाए 
समय के पैर लागे पहिये
बांध के घुंघरू दौड़ा जाए
समय का पंछी इक बार उड़ा जो
लाख जतन पर लाउट न पाय
आपन करनी आपन साथे
किसी की पीड़ा न कोई बाटें
यही रीत और नियम यही है
जइसन बीज बोये वइसन फल काटे
काम वही करियो 'श्लोक'
हाथ मसल न बादे पछताय
जीवन जियो बन के उजेरा
फिर कोई अँधेरा काट न पाय

 
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक' 

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!