रोज़ कसमे खाता हूँ
जब-जब ठोकर पाता हूँ
कहता हूँ....
नहीं करूँगा कुछ बुरा
नहीं बोलूंगा झूठ कभी
चुँगली-चाई ठीक नहीं है
चाल-चलन ये नीक नहीं है
किसी का मन दुखाना पाप है
इतना मुझको भी विश्वास है
फिर किस्सा वही दोहराता हूँ
उसी दुर्लभ दशा में स्वयं को पाता हूँ
रोज मैं कसमे खाता हूँ .....
फिर सोचता हूँ
करलु बुरी आदत से तौबा
अलसुबह उठ लूंगा प्रभु का नाम
नेक करूँगा सारे काम
मुझमे जिन्दा है स्वाभिमान
लड़ जाता हूँ बुराई से इक पल
दूसरे पल हो जाता हूँ निष्काम
फिर उसी राह से उल्टा आता हूँ
रोज मैं कसमे खाता हूँ .....
रचनाकार : परी ऍम श्लोक
जब-जब ठोकर पाता हूँ
कहता हूँ....
नहीं करूँगा कुछ बुरा
नहीं बोलूंगा झूठ कभी
चुँगली-चाई ठीक नहीं है
चाल-चलन ये नीक नहीं है
किसी का मन दुखाना पाप है
इतना मुझको भी विश्वास है
फिर किस्सा वही दोहराता हूँ
उसी दुर्लभ दशा में स्वयं को पाता हूँ
रोज मैं कसमे खाता हूँ .....
फिर सोचता हूँ
करलु बुरी आदत से तौबा
अलसुबह उठ लूंगा प्रभु का नाम
नेक करूँगा सारे काम
मुझमे जिन्दा है स्वाभिमान
लड़ जाता हूँ बुराई से इक पल
दूसरे पल हो जाता हूँ निष्काम
फिर उसी राह से उल्टा आता हूँ
रोज मैं कसमे खाता हूँ .....
रचनाकार : परी ऍम श्लोक
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