Monday, June 30, 2014

"प्रेम और पछतावा"

पहली नज़र का
असर तो नहीं कह सकते
बातो का खिंचाव था
जिसने इस लोहे को
अपने चुंबकीय आकर्षण से
खींच लिया था
कोई अदृश्य तागा
बांधे जा रहा था संग

मेरी दिशा में उठे थे बादल
मगर उससे भीग रहे थे तुम भी
गर्जन सुना था तुमने जो
उससे बिजलियाँ चमकी थी
तुम्हारे भीतर भी...
मौन रातो के सीने पर लिख
कर रहे थे इज़हार...

किन्तु आज उन पलो से
तुम्हारे अस्वीकार ने
पछतावे के कटीले कंगन डाल दिए हैं
जो पहनु तो चुभें....
और
उतारूँ तो छील देते हैं मुझे !!


_________परी ऍम श्लोक

4 comments:

  1. its a beautiful composition and all words falling in heart!

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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