उन लम्हों में इतनी तेज़ी थी जैसे बयार बह कर कहीं गुमशुदा हो गयी हो....
जिन्हे थामने की कोशिश में मैं खुद पत्तो की तरह सफर में दूर निकल आई हूँ....
कहो ! कोई वापिसी है क्या ? अब मेरे लिए !!!
रचनाकार : परी ऍम "श्लोक"
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मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!
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