औरत पर सितम की कहानी... बांचता इतिहास है......
कभी द्रोपदी चीर हरण..कभी सीता का वनवास है......
कैसे न घुटे दम देखकर कर... ऐसी ये दागी दशा......
देश के हर कोने में... नारी अस्मत का सत्यानाश है......
सोचा निकल के घर से बाहर.. खुली हवा में सांस लूँ.....
पर अंदर है रावण का ढेरा... बाहर दरिंदो का निवास है......
मैं ही जननी..मैं ही अर्धांगिनी..मैं ही बहन..बेटी मैं ही...
फिर मेरी जात का हो रहा....क्यूँ इतना उपहास है ?.....
डर के साये में दफ़न हूँ.....जीने पर अफ़सोस हैं
मुझको कैद करके मत कहो... की तू भी तो आज़ाद है....
कल जली थी जिसमें निशा....आज आशा उसी में बर रही...
तसल्लियाँ देने वालो तुम्हे... क्या उस पीड़ा का आभास है?....
कुंठित और सड़ती मानसिकता.... इंसानियत बदहवास है....
सुनो ! ये सब सुरक्षा की व्यवस्था... मेरे लिए बकवास है....!!!
______परी ऍम '"श्लोक"
Nice
ReplyDeleteहर पंक्ति में इंसानियत के नाम एक तमाचा जड़ दिया है आपने
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा
रंगरूट
Bilkul satya...badhiya
ReplyDeleteMUJHE LOOT LE NA KOI, GAYE THE PANAH ME,WE TO DEKHTE HI MERI, IJJAT LUTA GAYE....................BAHUT SATYA LIKHA HAI APNE,MERI SHUBH KAMANAYE AAPKO
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