Monday, June 2, 2014

"ख्वाइश"

आकर थम जाती हैं
हर तमन्ना मेरी
जब उसके मुँह से सुनती हूँ 
तमाम ख्वाइशें उसकी....

क्या न लाकर दे दूँ उसे मैं ?

उसके रास्तो से बीन लूँ
सब चुभते कंकर-पत्थर
उसकी तकलीफो को
अपने घर का पता देदूँ
और
उसके गले में डाल दूँ ताबीज़
कि बुरा वक़्त कण मात्र भी
उसे स्पर्श न कर सके....
खरीदकर ला दूँ
खुशियाँ सभी उसके लिए 
हर दफा देखूं उसे झूमता हुआ
अपनी जीत का जश्न मनाते हुए
हार उसके करीब जाने से पहले
टूट के बिखर जाए
उसके ताब से राख हो जाए नाकामियां
नृत्य करता देखूं उसके आँगन में
प्रेम..संस्कार..सम्मान कि अप्सराएं
रचता रहे वो अपनी कोशिशो से
अक्सर.....
 इक नया इतिहास !!!!


रचनाकार : परी ऍम श्लोक
 

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