Thursday, June 26, 2014

आज फिर खत उनका दबे जस्बात का आया है..........


हमने जिसे जलाया है... उसने हमें बुझाया है...........
आज फिर खत उनका दबे जस्बात का आया है............

इश्क़ के जंजाल में फस कर आखिर क्या पाया है..........
हर बार बे-उम्मीदी ने जाने कितना मुझे रुलाया है............

सवेरो ने बेबसी छेड़ी शाम ने धूल सा उड़ाया है...........
भूख-प्यास सब लौट गयी तेरा सुध जब आया है..............

उसको दिल कि डाली पर बिठा बाग-बाग झुलाया है
हर इक सितम उसका हमने पलकों पे उठाया हैं

कुछ तो है 'श्लोक' बात हुई रात विरह कि उदास हुई
सपनो का खिलौना देकर फिर नींदों को बहलाया है

तुम थे या वहम मेरा हवा के संग कुछ आया है
बड़े प्यार से जख्मो कि किन्ही हाथो ने सहलाया है

लगता है कुछ खोया सा ढूँढू लाख पर न मिले
बताओ न कि मुझमें से तुमने आखिर क्या चुराया है


              _______परी ऍम श्लोक

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