दुश्मनो से नहीं हमें अपनों से खौफ रहा ....
नींदों में उतर के कोई सपनो को नोच रहा...
नींदों में उतर के कोई सपनो को नोच रहा...
मिला के हाथ....दिल में अज़ाब रखते है...
इसी बात का अक्सर हमें अफ़सोस रहा...
इसी बात का अक्सर हमें अफ़सोस रहा...
वक़्त ने तब्दील कर दिया हर आदमी को ...
मैं न बदला मुझमें बस यही खोट रहा...
मैं न बदला मुझमें बस यही खोट रहा...
किसी का दिल दुःखा सब कैसे मुस्कुराते हैं?...
दर्द को थामे मैं लगातार यही सोच रहा...
दर्द को थामे मैं लगातार यही सोच रहा...
करूँ ऐतबार किसपे फिरंगी इस दुनिया में ...
यहाँ का बच्चा-बच्चा आँखों में धूल झोंक रहा...
यहाँ का बच्चा-बच्चा आँखों में धूल झोंक रहा...
किसी कोने में पड़ा बिलखता है हसरतो का टोकरा...
जो कभी पूरी ही न हो हमें भी तो वही शौक रहा...
जो कभी पूरी ही न हो हमें भी तो वही शौक रहा...
ग़ज़लकार : परी ऍम श्लोक
आप अच्छे अहसासों की मलिका हैं .....यूँ ही लिखते रहिएगा ....
ReplyDeleteTahe dil se shukriya aapka yun hosala afzayi kerne ka.....hum koshish kerte rahenge behtar likhate rahne ki....
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