जाने क्यूँ लगता है?
तुम आस-पास ही हो
परन्तु ये वहम के उत्पात के अलावा
कुछ भी नहीं है
ज्ञात है भलीभांति मुझे.......
फिर भी
सुबह आँख खोलते ही
नज़र तुम्हे ढूँढने
खिड़कियों के पार चली जाती हैं
और न पाकर तुम्हे
अवसाद कि घटाओ को समेट कर
उल्टे पाँव वापिस लौट आती हैं
बैठ जाती हूँ पढ़ने तब
तुम्हारा सरहद से भेजा
वो आखिरी पत्र
तुम्हारे आने का वादा
जिसका हर शब्द
स्नेह से लिबड़ा हुआ है...
जब कभी छत पे कागा बोलता है
तो मेरी आशा और ज़ोर पकड़ लेती है
लेकिन दिन-भर तरस के बीत जाता है
तुम्हे इक झलक छू लेने को
कभी गलती से हवाएँ भी अगर
चौखट पे आकर
खड़ी हो दरवाज़ा खटखटाये
तो दौड़ पड़ती हूँ
ये सोच की हो न हो
इस बार तो तुम ही होगे
जानते हो............... ?
वक़्त ने झाड़ दिया है
हर शाख से पुराना पत्ता
सब कुछ नवीन हो गया है
परन्तु इस मन के खण्डर में
कुछ साबूत रह गया है तो बस
तुम्हारी वापिसी कि प्रतीक्षा..... !!!
_______परी ऍम श्लोक
तुम आस-पास ही हो
परन्तु ये वहम के उत्पात के अलावा
कुछ भी नहीं है
ज्ञात है भलीभांति मुझे.......
फिर भी
सुबह आँख खोलते ही
नज़र तुम्हे ढूँढने
खिड़कियों के पार चली जाती हैं
और न पाकर तुम्हे
अवसाद कि घटाओ को समेट कर
उल्टे पाँव वापिस लौट आती हैं
बैठ जाती हूँ पढ़ने तब
तुम्हारा सरहद से भेजा
वो आखिरी पत्र
तुम्हारे आने का वादा
जिसका हर शब्द
स्नेह से लिबड़ा हुआ है...
जब कभी छत पे कागा बोलता है
तो मेरी आशा और ज़ोर पकड़ लेती है
लेकिन दिन-भर तरस के बीत जाता है
तुम्हे इक झलक छू लेने को
कभी गलती से हवाएँ भी अगर
चौखट पे आकर
खड़ी हो दरवाज़ा खटखटाये
तो दौड़ पड़ती हूँ
ये सोच की हो न हो
इस बार तो तुम ही होगे
जानते हो............... ?
वक़्त ने झाड़ दिया है
हर शाख से पुराना पत्ता
सब कुछ नवीन हो गया है
परन्तु इस मन के खण्डर में
कुछ साबूत रह गया है तो बस
तुम्हारी वापिसी कि प्रतीक्षा..... !!!
_______परी ऍम श्लोक
वाह क्या बात है. बहुत ही बढ़िया रचना
ReplyDeleteएक ऐसी प्रतीक्षा ना तो जिसका अंत ही है ना ही उससे अपना दामन छुडाने का ही मन ही होता है ! बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDelete