Monday, June 2, 2014

"बहने"

यूँ तो नहीं हैं
मेरे शब्दकोष में वो शब्द
जिससे उजागर कर सकूँ मैं
महता उनकी मेरे संसार में...
और चित्रकारता में निपुर्ण भी नहीं
कि रंगो को भर के दर्शा सकूँ
कितना गूढ़ा हैं उनके रंगो का असर
जीवन के ब्लैक-इन-वाइट तस्वीर पर 
कहूँ उनको कि वो हैं ऐसे जैसे
सूरज की पहली किरण की निर्मल रोशनी
गर्म आलम के बीच बहती सर्द मीठी हवाएं
मरुस्थल के रेत में जन्मा कोई विशाल सागर
श्याह आशाओ के आसमान पर
बिखरा हुआ सतरंगी इन्द्रधनुष
जलती धरती पे वर्षा की चंचल बूंदे 
गहराइयो में बीच अदृश्य गगनचुंभी मीनार
जिनके कांधो पर बैठ
पूरी कायनात अपने से नीचे दिखाई देती हैं
समुन्दर की लहरो को लपेटे
नीला सिल्की आँचल हो मानो
पतझड़ों में भी खिलखिलाती फूलो सी
बंज़र ज़मीन में भी हरियाई पौधे सी लहराती
और क्या कहूँ उनकी तारीफ में कि
कैसी हैं मेरी बहने ?
थकी धूप में खूबसूरत छाँव सी...
सबसे नायाब दुवाओं सी
महकती..घर..आँगन..और गाँव सी
ऐसी हैं मेरी बहने !!

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!