Monday, June 2, 2014

"लगन लागी"

तुम्हे पाकर अच्छा लगा
कि तुम मेरी हुई
अगर किसी और को मिल जाती
तो जाने मेरा क्या होता ?
लेकिन सोचा तो ये भी न था
और शायद अगर तुम न आती
तो कभी इसकी
कल्पना भी न कर पाती
कि जीवन के इक मोड़ पर मुझे
यूँ तुम मिल जाओगी
मुझे जिन्दा कर दोगी
हर मुमकिन तरीके से
सच !
अब कभी महसूस नहीं होता
कि मैं अकेली हूँ
उसपल भी नहीं
जब अँधेरा साये तक को पी जाता हैं
सन्नाटे में उठती आवाज़
दबाने लगती हैं साहस
तब खुद को
पन्नो के ह्रदय पे पा कर
भावुक हो उठती हैं
और मेरी दोस्त बन जाती हैं
तुम्हारी बदौलत पाये हैं मैंने
इतने सारे मित्रमंडल
जिनकी मूक भाषाओ को
पढ़ पाने का गुण भर दिया हैं तुमने मुझमे
इतना सब मुझे भेट करने के एवज़ में
छोटा तो हैं किंतु फिर भी 
सुनो ! तुम्हारा शुक्रिया !!!

रचनाकार: परी ऍम श्लोक

(""परी ऍम श्लोक कि तारुफ़ में जो मुझमें रची हैं मुझमें बसी हैं"" )

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