Friday, June 6, 2014

"मिलो न...फिर उस झील पर"

मिलना उस झील किनारे
तुम्हे पल दो पल
निगाह भर देखने का मन है
बहुत दिन गुजरे....
उन खूबसूरत मुलाकातों को
तुम्हारे गद्देदार हाथो को लिए हुए
अपने कोमल हाथो में
तुम्हारी हैरान कर देने वाली
शरारतो को जिए हुए...
पता नही ?
तुम अब दिखते कैसे होगे ?
झुरियाओ ने कहीं
खींच तो नहीं लिया
तुम्हारा रोबीलापन.....
बताओ !
यही तो तुम भी चाहते हो
मिल जाऊं मैं तुम्हे
अकेले किसी वीराने में
और तुम मुझे सुनाओ
अपनी तन्हाईयो के किस्से
जिसे मेरी यादो से
तुमने हमेशा सजाया हुआ था
पोछते रहते थे
उसपे जमी घूल को
हमेशा गीले रुमाल से...
कहो !
क्या मिलोगे मुझसे?
उसी झील पर
जहाँ के पत्थरो पर बनाया करते थे
हम एक दूसरे का चेहरा
जिसके गोद में उतरता देखते थे
सिन्दूरी सूरज......
जो साक्ष्य है हमारे मिलन कि
कहो !
क्या मिलोगे मुझसे.....
आज फिर उस झील पर ?


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!