रोज़ देते हैं इक नया ज़हर मुझे ...
लगता है जंगल अब ये घर मुझे...
मुरादे मांगती रही मैं जिनके वास्ते...
वो मार रहे हैं तानो का पत्थर मुझे...
ये दीवारे घोंटती हैं अब दम मेरा..
बाहर वहशी लगे पूरा शहर मुझे ....
न निकल सकी मैं जब मोह जाल से ....
फरेबी लगे तब ये हौसलों के पर मुझे .....
ले जाएगा मौत के दरवाजे तक 'श्लोक'
रूह तक छल्ली करके ये सबर मुझे ...
लगता है जंगल अब ये घर मुझे...
मुरादे मांगती रही मैं जिनके वास्ते...
वो मार रहे हैं तानो का पत्थर मुझे...
ये दीवारे घोंटती हैं अब दम मेरा..
बाहर वहशी लगे पूरा शहर मुझे ....
न निकल सकी मैं जब मोह जाल से ....
फरेबी लगे तब ये हौसलों के पर मुझे .....
ले जाएगा मौत के दरवाजे तक 'श्लोक'
रूह तक छल्ली करके ये सबर मुझे ...
_________परी ऍम श्लोक
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