मुझे हर खाई...हर मझधार... से गुजरना पड़ा...
ए जिंदगी! तेरे लिए... जाने क्या-क्या करना पड़ा....
भूख भी न मिटी.......प्यास भी बाकी रही...
नोन-रोटी खाकर भी... मुझको चुप रहना पड़ा....
धूप में जला..बारिश में भीगा..पतझड़ों में झड़ा...
हर मौसम से होकर.... इस सफर में गुजरना पड़ा....
ऐसा करूँगा वैसा करूँगा...मगर ये न होगा मुझसे...
जो कभी न करना चाहा.... फिर वही करना पड़ा...
दिल में कुछ और था.......मगर सामने कुछ और....
यही लिखा था भाग्य में...कह ख्वाब खत्म करना पड़ा...
कभी अमीरी भटक के... गलती से भी घर में न घुसी...
तमाम उम्र बस अभावो में.... गुजर-बसर करना पड़ा....
Written By : Pari M "Shlok"
ए जिंदगी! तेरे लिए... जाने क्या-क्या करना पड़ा....
भूख भी न मिटी.......प्यास भी बाकी रही...
नोन-रोटी खाकर भी... मुझको चुप रहना पड़ा....
धूप में जला..बारिश में भीगा..पतझड़ों में झड़ा...
हर मौसम से होकर.... इस सफर में गुजरना पड़ा....
ऐसा करूँगा वैसा करूँगा...मगर ये न होगा मुझसे...
जो कभी न करना चाहा.... फिर वही करना पड़ा...
दिल में कुछ और था.......मगर सामने कुछ और....
यही लिखा था भाग्य में...कह ख्वाब खत्म करना पड़ा...
कभी अमीरी भटक के... गलती से भी घर में न घुसी...
तमाम उम्र बस अभावो में.... गुजर-बसर करना पड़ा....
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