Friday, June 6, 2014

"आरज़ू"

लिखते लिखते जिंदगी की शाम करना चाहती हूँ
हर सदी के कवि को सलाम करना चाहती हूँ

ग़ज़लों...कविताओ का दिल में मंदिर बनाकर
यहाँ पूजा... तो कभी आज़ान.. करना चाहती हूँ

शब्दों से सज़ा कर सत्य..अहिंसा..प्रेम का गीत
इंसानियत का बेझिझक सम्मान करना चाहती हूँ

इस मिट्टी का मुझपे क़र्ज़ है मेरा जो भी फ़र्ज़ है
नेकी की बोली पे कर्म को नीलाम करना चाहती हूँ

हो सके पाक़ आब-ओ-हवा मेरे मुल्क की इसलिए 
कोशिश का अंश फ़ज़ा को प्रदान करना चाहती हूँ

बस इतनी सी आरज़ू 'श्लोक' के साथ में चलती है
मैं जीते जी कई बेहतरीन काम करना चाहती हूँ
 
अपने लिए नहीं मकसद मेरा औरो के लिए जीना है
मैं अपनी हर सांस अच्छाइयों के नाम करना चाहती हूँ


Written By : Pari M ‘Shlok’

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