Wednesday, June 25, 2014

दुनिया बदरंग बहुत लगने लगी......!!

दुनिया बदरंग बहुत लगने लगी......
मेरी परछाइयाँ भी मुझे ठगने लगी.....

छाले नहीं मिटे पैरो के अभी और......
रास्तो में नागफनी उगने लगी है.......

जलाया था चराग अंधेरो के लिए......
रात कायम है मगर रोशनी बुझने लगी......

चैन मुझको आता भला कैसे यहाँ.......
बदलते माहौल की सूरत मुझे चुभने लगी.....

सादा चोला और भेड़ियो सी नियत.......
ऐसी आबादी भी बहुत बढ़ने लगी......

जिन्हे पूजते थे देवी और दुर्गा की तरह......
वो ही औरत बाज़ारो में दामो पे बिकने लगी.....

जवानी कटती देखी मैंने शोहरतो के पीछे.....
बचपन पोर्न साइट के पन्नो पे कटने लगी

बाप-बेटी का रिश्ता भी मिला जब रौंदा हुआ
पूछो न की दिल की नस कितनी दुखने लगी

माँओ की हाथो में जब मैंने कटोरा देखा
औलादो की कारीगरी ज़हन को खटने लगी 

खा गया सारी नेकी कलयुग का दानव
बदी हर किसी के सर पर चढ़ने लगी


_____परी ऍम श्लोक

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!