खोल के रहने लगे 'श्लोक' कोई भी इस घर में
दिल मेरा हर किसी का आशियाना नहीं है
मूँद कर करूँ आँख किसी पर भी भरोसा
इतना भी नेक आज ये ज़माना नहीं है
कहना पड़ता है हर बात चीख-चीख कर यहाँ
ख़ामोशी समझे मेरी ऐसा कोई दीवाना नहीं है
वैसे बहुत बड़ी है दुनियाँ घूम कर है मैंने जाना
तो क्या हुआ कि अपना कोई ठिकाना नहीं है
छिपा के रख सकूँ बुरी याद किसी कोने में
अपने पास ऐसा कोई तयखाना नहीं हैं
कोशिश है अपनी हकीकत में जिया जाए
अपने बस की तो सपनो को सजाना नहीं हैं
अपनी कलम ही जाने कब तजुर्बों से भीग गयी
सोचा था किसी को भी कुछ बताना नहीं हैं
__________परी ऍम श्लोक
दिल मेरा हर किसी का आशियाना नहीं है
मूँद कर करूँ आँख किसी पर भी भरोसा
इतना भी नेक आज ये ज़माना नहीं है
कहना पड़ता है हर बात चीख-चीख कर यहाँ
ख़ामोशी समझे मेरी ऐसा कोई दीवाना नहीं है
वैसे बहुत बड़ी है दुनियाँ घूम कर है मैंने जाना
तो क्या हुआ कि अपना कोई ठिकाना नहीं है
छिपा के रख सकूँ बुरी याद किसी कोने में
अपने पास ऐसा कोई तयखाना नहीं हैं
कोशिश है अपनी हकीकत में जिया जाए
अपने बस की तो सपनो को सजाना नहीं हैं
अपनी कलम ही जाने कब तजुर्बों से भीग गयी
सोचा था किसी को भी कुछ बताना नहीं हैं
__________परी ऍम श्लोक
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