अब उम्मीद नहीं लगती
तेरे लौटने कि
मुझको,,
मैं दुआ में
अगर माँगू तो
बोल अब क्या
माँगू?
बड़े महंगे हैं दाम
मेरी ख्वाइशो के
शायद,
मैं खुदा से
अगर माँगू तो
बोल अब क्या
माँगू?
मुझे देखते ही झड़
गयें हैं आस्मां
के मोती,
तारो से अगर
माँगू तो बोल
अब क्या माँगू?
अपनी मेहनत से आज
तक तो भरा
नहीं है घर,
इन् फकीरो से अगर
माँगू तो बोल
अब क्या माँगू?
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 5/11/2013
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