सहमी हुई औरत
ठण्ड में भी पसीने से भीगी हुई
रात के अंधेरो में छिप रही थी
तारो कि ग़ुम रोशनी से
लपेटती हुई साफे से शरीर
डरी हुई अवस्था में
कांपता सा देखा उसको
रो रही थी पर बिना आवाज़ के
मुँह को बांधे हुए हाथो से
सन्नाटो से जैसे कोई दुश्मनी हो
चिपकी जा रही थी
१२ इंच के लाइट पोल से
चुम्बक कि तरह..
पर इतना डर क्यूँ था उसे ?
और किससे ?
अचानक कदमो कि आहट सुनी
आदमियो का इक गुट
जानवरो कि तरह भागता हुआ
भूखे भेड़िये फिर रहे हो जैसे
शब्द: कहाँ गयी?
ढूंढो माल अच्छा है..
सुन कर वो औरत
और असहज हो गयी
पर फिर भी टिकी रही
बिना हिले उसी जगह
ओह !
ये दशा..
नज़ाने कब सुरक्षित होगी औरत?
इस धरा पर...
हैवान पुरुषो आखिर कब छोड़ोगे तुम?
ये घृणित अपराध.......................................
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
ठण्ड में भी पसीने से भीगी हुई
रात के अंधेरो में छिप रही थी
तारो कि ग़ुम रोशनी से
लपेटती हुई साफे से शरीर
डरी हुई अवस्था में
कांपता सा देखा उसको
रो रही थी पर बिना आवाज़ के
मुँह को बांधे हुए हाथो से
सन्नाटो से जैसे कोई दुश्मनी हो
चिपकी जा रही थी
१२ इंच के लाइट पोल से
चुम्बक कि तरह..
पर इतना डर क्यूँ था उसे ?
और किससे ?
अचानक कदमो कि आहट सुनी
आदमियो का इक गुट
जानवरो कि तरह भागता हुआ
भूखे भेड़िये फिर रहे हो जैसे
शब्द: कहाँ गयी?
ढूंढो माल अच्छा है..
सुन कर वो औरत
और असहज हो गयी
पर फिर भी टिकी रही
बिना हिले उसी जगह
ओह !
ये दशा..
नज़ाने कब सुरक्षित होगी औरत?
इस धरा पर...
हैवान पुरुषो आखिर कब छोड़ोगे तुम?
ये घृणित अपराध.......................................
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
मार्मिक...
ReplyDeleteकल 25/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
Jaankari ke liye behad shukriyaaa.
Deleteहृदयविदारक !
ReplyDeleteहैवानियत को सबक भी औरत ही सिखायेगी
ReplyDeleteएक दिन मजबूती से खड़ी हो जायेगी ।
बहुत ही मार्मिक चित्रण परी जी। जाने कब थमेगा यर घिनौना कृत्य।
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteAap sabhi ka hardik dhanywad apne vichaaro se avgat krwaane ke liye...
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