कुछ तो कह दो कि अब ये तमाशा न बने...
वजह नयी कोई गम-ए-हताशा न बने...
फेकना है तो फेक इस कदर रंज-ए-तेज़ाब ...
कि फिर जिंदगी से मिल सकू ये आशा न बने...
डर इस बात का रह रह के मुझको सताता है, ..
वासना जोड़ कर प्रेम कि नयी परिभाषा न बने,..!!
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 7/12/13
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