Wednesday, December 4, 2013

ए हिन्द तेरी मिट्टी का रंग क्यूँ श्याह हो गया है?

ए हिन्द तेरी मिट्टी का रंग क्यूँ श्याह हो गया है?
हमारी सभ्यता का वज़न क्यूँ हल्का हो गया है?

पढ़ा था रामायण मैंने आदर्श राम कि बनबास कथा,
क्यूँ ये आदर्श-संस्कार अब धुँआ-धुँआ हो गया हैं?

बड़े दिन हुए सलामी दे सकू ऐसा कोई किरदार न मिला,
हर इंसान अपने-अपने ही स्वार्थ में अँधा हो गया हैं,

नहीं दिखती अब दुपट्टे में सीता, गीता हो या उर्वशी,
अब जीन्स, मिनी स्कर्ट का फैशन नया हो गया है,

कहाँ मिलते हैं अब बाल्मीकि, तुलसीदास और सूरदास,
साधुओ के चोले में हर हैवान और दरिंदा हो गया है,

कागज के नोट पर सिक्को कि छनक पर नाचती दुनियाँ,
सुर्खिओं में छा जाने को हर इंसान नंगा हो गया हैं!


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
date : 4/12/2013

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