मुझे
अक्सर तुम्हे पढ़ते हुए
(Dedicated to my Poetry ideal)
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
यूँ
ही ख्याल आया करता था..
नजाने
कैसे तुम्हारे शब्द
तीर
कि तरह उतर जाते हैं सीने में?
सपाट
पंक्तियाँ तो नहीं होती
इतना
घुमावदार प्रतिरूपण करते हो..
उबड़-खाबड़
इधर-उधर रखते चलते हो
अपनी
कविताओ में लव्जों को..
फिर
कैसे तुम्हारे लेख जगा देते हैं
गहरी
नींद में सोयी भावनाओ को?
पात
से बनी पिपरी जैसी लय निकालते हैं
बजा
देते हैं समझ के मंदिर का घंटा
कुछ
घडी मज़बूर कर देते हैं..
विषय
को सोचने पर देर तलक,
आखिर
कौन सी जादुई श्याही से
उंकेरते
हो और किस दिशा से लाते हो
वो
अनुभूति जो कोरे कागज से टकरा
कितनो
कि ही आत्मा को बेध देती है...
तुम्हे
देख के भान होता है
कि
प्रेम के गंध से अछूते हो
फिर
कैसे तुम्हारी संवेदना से भरी-पूरी
भाषा
रोंगटे खड़ी कर देती है?
मैंने
तुम्हारा बहुत पीछा किया है
तुम्हे
दिन-रात पढ़ा है
और
फिर तुम्हे दिया
अपने
आदर्श का स्थान लेख कि दुनिया में...
मुझे
समझ आ गया कि आखिर
तुम
लिखते कैसे हो छनछनाते ग़ज़ल?
बुनते
कैसे हो गीतो कि माला?
और
कविताओ को कैसे लपेट देते हो
कभी
नीम से तो कभी शहद से?
(Dedicated to my Poetry ideal)
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
आपको दीप पर्व की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteकल 25/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
परी जी बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteपिटाई होने के बाद
ReplyDeleteनिकलता है दर्द
बताये भी तो
बताये कोई कैसे :)
bahut sundar rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!!!
ReplyDeleteबहुत गहन चिंतन और उसकी प्रभावी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति ......
ReplyDeletewaah sundar abhivyakti
ReplyDeleteBhaut accha pari ji
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