Tuesday, December 10, 2013

महंगाई कि मार से मन बड़ा भयभीत हैं !!

महंगाई कि मार से मन बड़ा भयभीत हैं,,,,
रोटी, कपड़ा और मकान बस यही अपना गीत हैं!

पट्रोल छूता आसमान, प्याज़ हुआ डबल दाम,,,,,
अपने घर से दूर लगती ये महंगी मार्कीट हैं!

सिलेंडरो पे लगती सब्सिडी, न खाया जाए ढूध घी,,,,
सब्जिओं का स्वाद कड़वा, फल हुए तीत हैं!

अब न अतिथि भाते हैं न खुद कहीं रह पाते हैं,,,,,
नोन रोटी खाकर बोलते हैं अपना घर ही स्वीट हैं!

कभी तो वो सरकार आएगी जो महंगाई घटाएगी,,,,
तब ही अपना नाम लिखना वोटरलिस्ट में ठीक है!

जब भी बीमार पड़ते हैं दादी का नुक्सा अपनाते हैं,,,,
हॉस्पिटल में दवाई से महंगी तो डॉक्टर कि फीस है!


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 10/12/2013

3 comments:

  1. अब न अतिथि भाते हैं न खुद कहीं रह पाते हैं,,,,,
    नोन रोटी खाकर बोलते हैं अपना घर ही स्वीट हैं!

    कभी तो वो सरकार आएगी जो महंगाई घटाएगी,,,,
    तब ही अपना नाम लिखना वोटरलिस्ट में ठीक है!
    hahaaaaaaa sateek rachna

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