Wednesday, December 25, 2013

"कल्पनाये... जब हकीकत में बदलने लगेंगी"

कल्पनाये...
जब हकीकत में बदलने लगेंगी
तब मैं लिखूंगी
इधर-उधर भटकते हुए
अतिरिक्त विवेक के रंगो को खोजते हुए
तराशते हुए  अनगिनत शब्दो से लदी   
अपनी सोच कि वो भाषा
जो सुंदर से ज्यादा आकर्षित होंगी
जो भंगी नहीं सर्वोपरि होगी
गंधाती हुई नहीं
बल्कि महक से भर देगी
समाज में बसर कर रहे
हर वर्गों के व्यक्ति का जीवन !

तब मैं कविता लिखूंगी
छंद, श्लोक, मुक्तक,
गीत, ग़ज़ल, शायरी
इनसब को मिश्रित करके
सौहार्द का विकसित रूप
अधरो पर प्रेम के
शब्द रख दूंगी प्रत्येक के
छीन लुंगी उनसे उनकी हिंसक प्रवृति
स्वार्थ के स्थान पर अपनत्व निहित करुँगी
जब स्वप्न अपने वज़ूद को
अजीबो-गरीब यातनाओ से मुक्त कर देंगी
स्त्री मान का बीज बो दूंगी
हर किरदार के बंज़र जहन में
सींच डालूंगी इससे कोशिशो के पानी से
इक रिश्ता कायम कर दूंगी
कायनात में मानवता का!

परन्तु प्रथम प्रश्न तो यही है..
पहले सा आज भी छेदता हुआ 
जाने कब मुक्त हो पाउंगी मैं इस प्रश्न से?
क्या मेरे साथ कोई और शुरू करेगा सब कुछ खूबसूरत बना देने का प्रयास??

क्या कभी मेरी कल्पनाओ को
सुन्दर घटनाओ का रूप मिल पायेगा??

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 26/12/2013
 

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!