Sunday, December 29, 2013

!! लगा लो पहरे तुम फिर हम भी देखते हैं !!

लगा लो पहरे तुम फिर हम भी देखते हैं
ये महक इश्क़ कि कौन सी दिवार रोक पाती है

ये हम है या हमारी पाक़ शिद्दत तुमको पाने कि
हर राह खींच कर तुम्हारे शहर तक ले जाती है

नज़ाने क्यूँ तेरा सितम भी न मिटा पाया ये जूनून
दर्द अपने लबो से तुम्हारा नाम ग़ज़ल सा गुनगुनाती हैं

हमारे सब्र का ही तो इम्तिहान चल रहा है
हम चिराग जलाते हैं हवाए आंधियां बन जाती है....


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'




 

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!