बेवा हुई रौनकों का चेहरा आफ़ताबी देखिये..
शब्दो में सिमटे हुए दावे किताबी देखिये..
जल रहा पूरा शहर मज़हबी हिंसा कि आग में..
दंगे के बाद नेताओ के रुतबे नवाबी देखिये,
इस व्यवस्ता का दोष न दे तो बताओ क्या करें..,
चल के गरीबो के घर का रोटी-पानी देखिये..,
घूस देकर नौकरी मिल जाती है शख्स ठूंठ को..
लोकतंत्र है देश में फिर भी खराबी देखिये..,
सारे बैंक ठस हुए काले धन को ठूस-ठूस कर..
महंगाई के नाम पर जनता कि लुटाई देखिये..,
11/12/13
बहुत सुन्दर आकर्षक रचना....
ReplyDeleteइस व्यवस्ता का दोष न दे तो बताओ क्या करें..,
ReplyDeleteचल के गरीबो के घर का रोटी-पानी देखिये..,
सच्चाई बयान करते सार्थक शब्द