अधूरापन, खालीपन, अपूर्णता..
इससे पहले ये शब्द थे,,,
आज महसूस होती हैं
इनकी गहराइयाँ,
इनकी गहराइयाँ,
जब तुम नहीं हो,,
केवल मतलबी भीड़ दिखती है,,
केवल मतलबी भीड़ दिखती है,,
और कोई मुझे नहीं जानता,,
मैं क्या हूँ?,
मेरी पहचान खो गयी है,,
मैं क्या कहना चाहती हूँ ?
कोई सुनता नहीं..
स्वयं कि परछाई भी
किसी प्रश्न का उत्तर नही देती,
किसी प्रश्न का उत्तर नही देती,
या यूँ कहूँ समझ ही नहीं पाता कोई!
शब्दो से असर ख़तम हो गया है जैसे,,
या फिर मैं कोई अलग भाषा बोलने लगी हूँ,,
स्त्री हो या पुरुष
सब ऊपर से नीचे तक देखते हैं,
सब ऊपर से नीचे तक देखते हैं,
कोई भाव आंकता ही नहीं,,
हर ओर से अकेलेपन के
जाल ने लपेटा हुआ है मुझे,
जाल ने लपेटा हुआ है मुझे,
तुम तक पहुँचने का
रास्ता नहीं मिल रहा,
रास्ता नहीं मिल रहा,
ये बीच कि दीवार लम्बी ओर मोटी है,
बाँट दिया है इसने
एक अस्तित्व को दो हिस्सो में,
क्या संभव नहीं
? एक अस्तित्व को दो हिस्सो में,
कि इस दिवार के बीच छेद कर दिया जाए,,
या
मैं उस तरफ आ जाऊं
या
फिर तुम इस तरफ,,
मैं उस तरफ आ जाऊं
या
फिर तुम इस तरफ,,
दो अपूर्ण मिलके,,,,,,
अपूर्णता को पूर्णता में बदल दे,
अपूर्णता को पूर्णता में बदल दे,
और
समाप्त करदे
अपूर्णता के मायने!!
अपूर्णता के मायने!!
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