Saturday, December 28, 2013

इक बात कहूं ??

सुनहरे सूत से बनी
अति सुंदर झूठी ख़ुशी कि
चादर ओढ़ ली है सांवली शक्ल पर
कल के आगमन से महरूम हो!

कोई अनुमान ही नहीं लगा पा रहा
इसकदर लीप-पोत के रख दी है
सब्र कि हर दीवार
नाशवान हलचलों के मध्य
छालों को छिपाये
साहीदार जंगली जिंदगी के रास्तो से
बिना झिझक गुजरती गयी !

हौसला नहीं है तो बस
हकीकत से रुबरु होने का
उसे सुनाने का, उसे कहने का
क्यूंकि तब दर्द से जन्मे
अनबने सवालो का तेज़
कागज़ कि भाति मुझे जला देगा! 

वैसे इक बात कहूं ??
कभी-कभी असत्य ना...
सत्य से ज्यादा सकून देता है!!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 28/12/13... 12:18 AM

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!