जाना चाहती हूँ बहुत दूर...................
इन बदलो कि सफ़ेद नीले रंगो में
सिमट जाने का मन बन रहा है
या तारा बन के टिमटिमाऊ
लेकिन कोई न जान पाये
मैं कौन सा तारा हूँ ?
इस मिटटी से दोस्ती बना लेती हूँ
या फिर पानी में बह निकलती हूँ....
आग में उतर जाऊं क्या?
राख बन के फैल जाउंगी तब हर जगह
उड़ के पुतलियो में जा गिरूंगी
और नम करती रहूंगी अपनों कि आँखे...
मुझे याद बन जाने दो..
मेरे हाथ में देदो मेरी मृत्यु कि कमान भी
ताकि जिंदगी कि दिशा के साथ साथ
मृत्यु को भी अपने मुताबिक दिशा दे सकूँ ...
ये मेरी आखिरी इच्छा है,
पूरी करदो!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
इन बदलो कि सफ़ेद नीले रंगो में
सिमट जाने का मन बन रहा है
या तारा बन के टिमटिमाऊ
लेकिन कोई न जान पाये
मैं कौन सा तारा हूँ ?
इस मिटटी से दोस्ती बना लेती हूँ
या फिर पानी में बह निकलती हूँ....
आग में उतर जाऊं क्या?
राख बन के फैल जाउंगी तब हर जगह
उड़ के पुतलियो में जा गिरूंगी
और नम करती रहूंगी अपनों कि आँखे...
मुझे याद बन जाने दो..
मेरे हाथ में देदो मेरी मृत्यु कि कमान भी
ताकि जिंदगी कि दिशा के साथ साथ
मृत्यु को भी अपने मुताबिक दिशा दे सकूँ ...
ये मेरी आखिरी इच्छा है,
पूरी करदो!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
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