हम बहती दरिया के
वो दो किनारे हैं,
जो साथ तो चलते हैं
मगर इक निश्चित फासले के साथ!
पानी के तेज़ बहाव के माध्यम से ही
हम अपना हाल
इक दूसरे से साँझा कर पाते हैं!
ये कश्तियाँ सन्देश वाहक हैं
जो तुम तक मेरे प्रेम का संचार करती हैं!
कभी-कभी जब थक कर टूट जाती हूँ
बहुत अकेली महसूस करती हूँ
तब मन करता हैं
अपने अस्तित्व कि
नम मिट्टी को रेत बना
हवा के साथ उड़ कर
तुम्हारे पास उस तरफ आ जाऊं
और तुम में मिल जाऊं कभी न जाने के लिए
ये लहर न थामू
छोड़ दू धरातल के लिए
और इन पहाड़ो के लिए इन्हे
क्यूंकि अगर ये दरमिना न होते
तो शायद! कदम बढ़ाते-बढ़ाते
हम इक दूसरे को सम्भवता आलिंगन कर पाते!
परन्तु ये अब सम्भव कहाँ?
हमारे कर्म के दायरे ने
कठोर नियमो में बाँध दिया है!
हमें यूँ ही इक साथ...
इतना ही फासला लिए
आजीवन कई जिन्दगियों का
जीवन अपने अंदर समेटे लिए चलना है...
बिना थके... बिना रुके...बिना किसी विलाप के!!
रचनाकार: परी ऍम 'श्लोक'
भी-कभी जब थक कर टूट जाती हूँ
ReplyDeleteबहुत अकेली महसूस करती हूँ
तब मन करता हैं
अपने अस्तित्व कि
नम मिट्टी को रेत बना
हवा के साथ उड़ कर
तुम्हारे पास उस तरफ आ जाऊं
और तुम में मिल जाऊं कभी न जाने के लिए
ये लहर न थामू
छोड़ दू धरातल के लिए
और इन पहाड़ो के लिए इन्हे
क्यूंकि अगर ये दरमिना न होते
तो शायद! कदम बढ़ाते-बढ़ाते
हम इक दूसरे को सम्भवता आलिंगन कर पाते!
परन्तु ये अब सम्भव कहाँ?
हमारे कर्म के दायरे ने
कठोर नियमो में बाँध दिया है!
क्या बात है ! बहुत सुन्दर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 21 नवम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
'हमें यूँ ही इक साथ...
ReplyDeleteइतना ही फासला लिए
आजीवन कई जिन्दगियों का
जीवन अपने अंदर समेटे लिए चलना है...'
- मानव जीवन की यह नियति है - बस अभिव्यक्ति का एक माध्यम मिला है जो परस्पर जोड़े हुये है .