Monday, December 2, 2013

इक छोटी सी बात पर कोहराम क्यूँ मचाऊँ?

 इक छोटी सी बात पर कोहराम क्यूँ मचाऊँ?
बहुत मुद्दे हैं आवाम में लड़ने वाले,
मैं गिर जाऊं अगर कीचड़ में तो अज़ीज़ हाथ देकर उठा लेना,
काफिलो में फिर रहे हैं कालिख रगड़ने वाले,
जो वक़्त अपना है किसी के आगोश में न देना,
मौका परस्त कई हैं इन हालात में सवरने वाले, 
कभी दोषी मिलूं तो तन्हाई में सज़ा-ए-मौत दे देना,
यहाँ मसले कम नही मुझे बदनाम करने वाले, 
दरवाज़े खिड़कियों को बंद रखना मुझे प्यार जब करो,
नफरत दिलो में लिए आयेंगे इस गली से गुजरने वाले, 
गुजरा हुआ ज़माना था जब जुबान कि कद्र होती थी,
आज इंसान है तो सिर्फ स्वार्थ के लिए मुकरने वाले,,
उसी माँ कि इज़ज़त का तमाशा बना देते हैं यहाँ,
कुछ कपूत औरत के आँचल में पलने वाले, 
हुस्न कि रौनक देख कर मन कि किताब न पढ़ना,,
नकाब ओढ़ के आतें हैं अक्सर छलने वाले, 
चलती है इस शहर में मसलन झूठ कि दुकान,
लुट जाते हैं बाज़ार में सच पर चलने वाले, 
मुश्किल में छोड़ जाते हैं मोहोब्बत के मसीहा ही,
अब राह-राह मिलते हैं ऐसे रंग बदलने वाले,,  
हुआ इक गुनाह तो ता-उम्र भुगतते रहना कनीज़,
अब दर दर लूटेंगे तुझे नाज़ का दम भरने वाले,
इक ही आलम पर उमड़ेगा हर एहसास का हजूम,
मय्यत पे आएंगे इक साथ नफरत और इश्क़ करने वाले,,
 
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
dated : 11/11/2013

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