Saturday, December 7, 2013

स्मृतियाँ


अमूल्य स्मृतियाँ शाही अंदाज़ में
बैठी हैं आसन लगाये
प्रत्येक कमरे में जहन के
बेहद ही सुन्दर महरूनी लिबास में
सुगन्धित पुष्पो में लिपटी हुई
थकी-हारी जब मैं कार्यालय से
हर शाम घर आती हूँ तो
दरवाज़ा खोलते ही वो सुरमयी रोशनी
आँखों के दरख्तो में उतर आती हैं
दौड़ के मुझसे लिपट जाती हैं
पूरा दिन पलके बिछाये
मेरे प्रतीक्षा में ही बैठी होती हैं 'स्मृतियाँ'
मैं झट से पल्ला बंद कर लेती हूँ
ताकि मुझे छोड़ बाहर न जाएं
और जाकर इनके पास बैठ जाती हूँ
मुझे फिर ये उन बगीचो से
भीड़-भाड़, धक्का मुक्की के बीच ले जाती हैं
कभी आँगन में तो कभी घर के बालगनि में
कभी खुले आसमान के नीचे...
हमारे साथ के तरह-तरह के चलचित्र दिखा
मुझे विशिष्ठता का अनुभव दिलाती हैं
पुरे दिन का थकान तुम्हारी दी हुई
'स्मृतियाँ' इक झोके से उड़ा देती हैं
साथ ही जता देती हैं मुझे
कि उन लम्हो में जो था
वो न समाप्त होने वाला निठुर भाव हैं,
मेरी डूबती हुई आशाओ को
अपने कंधो पर बिठा पार लगा देती हैं.. 

मुझमे जगा देती हैं तुमको कहीं से भी
खोज लाने का साहस !!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
 

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