कवित्री का जीवन
गहन,व्यापक और निष्पक्ष विचारो का
चोला पहने हुए,,
हर पल में नयी अनुभूतियो में सन जाना,
कभी धूल बनकर सोचते रहना,
कभी हवा का मद्धम तो
कभी तेज़ झोका बन जाना,
कभी घास बनकर ज़मीन से चिपके रहना,
कभी सितारा बनके आसमान में टंग जाना,
आग बन जाती है कभी पतंगा,
जल बन कर सोचती है कभी मछली,
कभी युवती, कभी बच्ची, तो कभी वृद्धा
कभी कांटो के बीच गुलाब कि फ़िक्र आती है,
तो कीचड़ में उगे कमल कि व्यथा भापने लगती है!
कवित्री का लेख स्वयं को वर्णन करना नहीं..
किन्तु प्रकृति के प्रत्येक अंश कि व्याख्या करना है,
उसका कोई भी समय व्यर्थ नहीं जाता
उसका हर पहर एक विषय होता है,
वो तंग रास्तो में भी चौड़ाईया भाप लेती है,
अंधेरो से भी उजाला खोज लाती है
सन्नाटो कि भी आवाज़ सुनती है,,
वो सूखे तिनको से भी हाल पूछ लेती है,
हर रात जब वो दराज़ खोलती है,
तो कोरे पन्ने शब्द कि प्रतीक्षा में बैठे मिलते हैं,
चाँद कि रोशनी खिड़कियों से
परदे को पार करके अंदर आ जाती है,
और बगल में सखी बनके बैठ जाती है,
कवित्री लिखती है
हर भाव जो उसके मन में उठता है,
हर प्रश्न जिसके उत्तर सोये हुए होते है,
हर विषय जो महत्वपूर्ण अनुमान लगता है,
बिना किसी भय के, हर विधा को दिशा दे देती है,
कवित्री नींद की फ़िक्र किये बिना तब तक लिखती है,
जब तक पुरे दिन के उलझन अंकित न हो जाए !
चारपाई पर लेटी माँ व्यंग कसती है,
जाने कौन क्या अनुमान लगाये कविताओ का?
किन्तु कवित्री केवल निष्पक्षता से लिखती है,
कभी बदलाव के लिए,, कभी सदभाव के लिए,
कभी प्रेमभाव के लिए,,कभी सम्मान के लिए
कमाने का माध्यम नहीं इससे अनभिज्ञ नहीं
कवित्री इतना जानती है,
उसके लेख ने यदि किसी का भी जीवन बदला
तो उसका लिखना
सार्थक हो जाएगा!
Dated : 29/11/13
वाह! पहली पोस्ट ही गजब की लिख डाली थी :)
ReplyDeleteएक बार फिर से इसे पढ़ कर कुछ वर्तनियों मे सुधार कर लीजिएगा।
सादर
अनूठी कविता..
ReplyDeleteकल 03/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत सुंदर.......
ReplyDeleteवाह... बहुत ही बढ़िया।।। वाकई कवयित्री ऐसी ही होती है
ReplyDeleteउत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया विचारशील प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया विचारशील प्रस्तुति
ReplyDelete