सच, वफ़ा, प्यार कि शहर में आम लुटती हुई इज्जत,
मिली थी कल रात मुझे फुटपाथ पर सोती हुई शिद्ददत,
बड़ा अफ़सोस हुआ हाल-ए-मुल्क देखकर "श्लोक"
बिकती हुई इंसानियत खरीददती हुई शौहरत!!! "
मिली थी कल रात मुझे फुटपाथ पर सोती हुई शिद्ददत,
बड़ा अफ़सोस हुआ हाल-ए-मुल्क देखकर "श्लोक"
बिकती हुई इंसानियत खरीददती हुई शौहरत!!! "
" तकदीर कि महफ़िल में अभागे निकल गए,
कांटे से उलझ के दुपट्टे के धागे निकल गए,,
बचपन याद आया जब माँ सुनाती थी लोरियां,
हम कम उम्र में ही तजुर्बो से आगे निकल गए "
कांटे से उलझ के दुपट्टे के धागे निकल गए,,
बचपन याद आया जब माँ सुनाती थी लोरियां,
हम कम उम्र में ही तजुर्बो से आगे निकल गए "
खुद को आंसुओ
कि धार से
सीच रही है,,
कभी सोचा तुमने
कि मुझपे क्या
बीत रही है,
मुझे टांग दिया
है पीड़ कि
खूंटियों पे ले
जाकर,
जिंदगी साँसों कि रबड़
बेवजह ही खीच
रही है"
इन सन्नाटो के बाहर
तैनात महफ़िलो का
कारवाह हैं,
रुस्वाईओ
कहदो इन्हे जाकर
अंदर लाशो का
सिलसिला है,
मत दफनाना इन्हे वाकीफो,
मत जलाना दुश्मनो
तुम,
वो आयेंगे इसे बीनने
जिनका हर एहसास
से रिश्ता है
"ये
सुबह आवाज़ दे
रहा है मुझे,,,
अंत के बाद
एक शुरुआत दे
रहा है मुझे,,,
अंजाम कि फ़िक्र
तो कायरो का
शौक है,,
उड़ता हुआ परिंदा
ये पैगाम दे
रहा है मुझे,,,"
Written By : Pari M Shlok
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