Sunday, December 22, 2013

"अलविदा जिंदगी"

छोड़ कर चले जाओ
टांग कर खामोश अरगनी पर
झूलने दो मुझे इत्मीनान से नींद में
तुम नहीं गए तो मैं खुद धकेल दूंगी!

मैं अकेली हो गयी हूँ
आने दो सब नाते-रिश्तो को
मित्रो को, मोहल्ले कि भीड़ को
बहुत सुन लिया आत्मा को छेदने वाली बात
अब सुनने दो कुछ कणप्रिये शब्द मेरी तारीफ में!

एक आखिरी बरसात कि आरज़ू है..
रो लो तुम....
खो देने का अफ़सोस देखना है..
तुम्हारे चहरे पर...!

त्याग दिया है मैंने सब चेतना
अब जो कुछ भी होगा इक-तरफ़ा होगा..
मैं कैसे तुम्हे देती जो मेरे पास था ही नहीं
शिकवा खुद से नहीं अर्पण किया जो था !

मुझे खो देने का गम सबको होगा...
बेशक रीतू, गीतू, अमीना, सकीना सब मिलकर भी
"परी ऍम श्लोक" कि कमी नहीं पूरी कर सकती ....

मुक्त हो रही हूँ मैं
जीवन इक सवाल बन गया है अब से
छोड़ कर जा रही हूँ तुम्हारे दामन में प्रायश्चित!!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'


 

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