तुम्हारे
बिना..
सबकुछ महत्वहीन है, हर
शब्द अर्थहीन,
हर आवाज़ व्यंग
करती हुई प्रतीत
होती है,
चुप्पी केवल आलोचना
करती है,
हवा का हर
झोका धकेल देता
है मुझे,
बरसात का हर
बूँद गला रहा
है,
पंख जैसे नोंच
दिए गए हों
ऐसा आभास हो
रहा है,,
जीवन दिशाहीन हो गया
है, मार्ग खो
गए हैं,,
मैं चल रही
हुँ पर स्थिर
हुँ,ज़मीन ने
जकड़ लिया हो
जैसे मुझे,
किसी प्रशंशा या सहारना
के लिए अब
कुछ नहीं करती,
पन्नो को गोदती
हूँ, जब तुम्हारी
असीम याद आती
है,
और मैं भावुक
हो उठती हूँ,
इच्छाये
लुप्त हो गयी
है मुझमे से,,
कुछ पाने-खोने
कि सीमा से
बाहर आ गयी
हूँ,
यदि अब सोने
का भण्डार भी
दिया जाए तो
व्यर्थ,
कई रिश्तो ने मुँह
फेर लिया है
मुझसे,
सपनो कि चादर
फट चुकी है
धागे बाहर आ
चुके हैं,
दिन-रात ने
चेहरा दिखाना बंद
कर दिया है,
बाहर केवल कुहिरा
है,,जिसमे कुछ
दिखायी नहीं देता,,
पतझड़ धीरे-धीरे
करके उम्र के
पत्ते झाड़ रहा
है,
अब सावन कुछ
हरा नहीं करता,,सब कुछ
सूखा पड़ा है,
तुम्हारे बिना...
अपूर्णता गहरा गयी है,
अब किसी चीज़ से भय नहीं लगता,,
सब कुछ का अंत हो गया है,
देह हल्का गया है,,
अपूर्णता गहरा गयी है,
अब किसी चीज़ से भय नहीं लगता,,
सब कुछ का अंत हो गया है,
देह हल्का गया है,,
अब प्रतीक्षा है तो मात्र मृत्यु कि!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
तुम्हारे बिना...
ReplyDeleteअपूर्णता गहरा गयी है, ...ahsaason se bharee rachna
पतझड़ धीरे-धीरे करके उम्र के पत्ते झाड़ रहा है,
ReplyDeleteअब सावन कुछ हरा नहीं करता,,सब कुछ सूखा पड़ा है,
अच्छी रचना