Sunday, December 15, 2013

"प्रेम"

निष्पक्ष होता है
पाने-खोने कि इच्छाओ से दूर,
लीन होता है समर्पण में,
सादा बिना किसी शोज़-श्रृंगार के
किन्तु फिर भी है बेपनाह खूबसूरत !

बेहद पुराना है युगो से चला आ रहा है
न तो इस पर जंग लगा
न तनिक टूटा-फूटा, न पिघला, न ही सूखा !
 
ये कोई समान नही एहसास है,
हृदय में व्याप्त इक संवेदना है
बीतते समय के साथ
गहरा होता जाना इसका नियम है !

वासना से परे है, दृढ़ संकल्पि है,
निहित है अंश इसका कण-कण में,
किन्तु सबको मिल पाना भी कठिन है !

सीमाहीन हैं, इसका कोई निश्चित दायरा नहीं,
दिखता नहीं केवल महसूस किया जा सकता है
अमर है कभी मरता नहीं,
अजेय है कभी घुटने नहीं टेकता किसी भी परिस्थिति में,

एकमात्र भाव है हर द्वन्द से मुक्त
सर्वपरि, सर्वश्रेष्ठ, सर्वशक्तिशाली, केवल शुद्ध "प्रेम" !!

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
dated : 16/12/2013

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