परिंदा पिंजरे में बैठा
नज़र आसमान के पंछियो पर
उकता गया था वो कैद से
उड़ना था उसे..
मुझसे कहा जाना चाहता हूँ
अब ढूंढ के खाऊंगा
घोसला पेड़ पर बनाऊंगा
उसे मालूम न था
बाज़, चील, कौवे भी मिलेंगे अभी तो
मुश्किल अब आयेंगे पंखो पर लदने
ढोएगा वो इसे
फिर कौन सुनेगा उसक-पूसक
बेशक आज़ाद होगा
पर सना होगा उलझन में
कौन सहलाएगा प्यार से उसे?
मैं नही रहूंगी उधर
क्यूंकि उड़ नही सकती मैं,
कौन ध्यान देगा?
हो सकता है उसे मेरी याद आये
मेरे हथेलियो का मर्मस्पर्श
कभी उसके ह्रदय को छू ले
मोह कि तरंगे उस तक पहुंचे
और एक शाम.....
वो अपने आशियाने में लौट आये
ठहर जाए उसके साथ उसके भाव भी
इसी स्नेहिक पिंजरे में !!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 26/12/2013
नज़र आसमान के पंछियो पर
उकता गया था वो कैद से
उड़ना था उसे..
मुझसे कहा जाना चाहता हूँ
अब ढूंढ के खाऊंगा
घोसला पेड़ पर बनाऊंगा
उसे मालूम न था
बाज़, चील, कौवे भी मिलेंगे अभी तो
मुश्किल अब आयेंगे पंखो पर लदने
ढोएगा वो इसे
फिर कौन सुनेगा उसक-पूसक
बेशक आज़ाद होगा
पर सना होगा उलझन में
कौन सहलाएगा प्यार से उसे?
मैं नही रहूंगी उधर
क्यूंकि उड़ नही सकती मैं,
कौन ध्यान देगा?
हो सकता है उसे मेरी याद आये
मेरे हथेलियो का मर्मस्पर्श
कभी उसके ह्रदय को छू ले
मोह कि तरंगे उस तक पहुंचे
और एक शाम.....
वो अपने आशियाने में लौट आये
ठहर जाए उसके साथ उसके भाव भी
इसी स्नेहिक पिंजरे में !!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 26/12/2013
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