Monday, December 2, 2013

व्यथा


कल रात से ज़ोरदार बरसात शुरू है,
मेरे घर के आस-पास,
आज भी बदलियाँ घनी काली हैं,
लगता है बहुत पानी गया है इनके पास,
अब सब उड़ेल देना चाहती हैं,,
कब तक सहन कर पाऊँगी ओलो कि मार,,
छप्पर उड़ गया हैं घर का,,
अब केवल मिट्टी कि दिवार हैं,
एक-एक बूंद गला रही है इसे भी,
मैं भी पूरी भीग चुकी हूँ,
ठिठुर रही हूँ ठण्ड के मारे,,
एक पेड़ था घना बहुत टूट गया,,
वरना बचा लेता बर्फीले पानी से,
मेरे सांस कि गति भी रुकने लगी है,
माटी कि ज़मीन पानी सोखने में असक्षम हो गयी है,
बाढ़ कि स्थिति आन पड़ी है,,
पानी गले के ऊपर हैं,,
आभास हो रहा है ऐसा,,
मेरे अंत के साथ ही आज ये वर्षा रुकेगी,
कुछ पल और उसके बाद सब शांत हो जायेगा,,
मैं फिर नही रहूंगी व्यथा सुनाने को,


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated: 7/11/2013

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