Tuesday, December 24, 2013

फेसबुक


फेसबुक बयां करती है..
कुछ छुपी छुपी कहानियाँ?
या फिर कुछ भी ऐसे ही ?

इधर उधर का कॉपी पेस्ट
दुनिया भर के फ्रेंड रिक्वेस्ट
कुछ असली आईडी तो कुछ जाली फेक..

हर स्टेटस पर कमेंट वाह! वाह! क्या बात है,
ये भी नहीं देखते दीवाने समय आधी रात है..
पिक्चर कैसे भी आये दोस्त बोलते हैं
अवेसम..सुन्दर, लूकिंग ग्रेट...
पर हम क्या हैं असल कहानी फेसबुक बता पायेगा?
कौन भला अपनी अंदर कि खामी वहाँ बतायेगा??
शक्ल बता पायी जो कुछ, आँखों से भापा गया
फिर मेकअप से लिबड़े चहरे से चरित्र क्या नापा जाएगा?

क्या असलियत किसी कि दो चार लाइन बतलायेगा?

सोच - सोच के ये तमाशा दिल दीमक सब वैट है!
 
मन पढ़ने के खातिर

 

फेसबुक नॉट परफेक्ट है??
 
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
(Dated : 24/12/2013)

 

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