Monday, December 30, 2013

सच

सच तो फिर
सच ही होता है न ?
तुमने क्यूँ बोला कड़वा है ?
तुम तो खुद को सच्चा बोलते हो
फिर कदम पीछे क्यूँ हटा रहे हो
सच का सामना करो
तुम कमज़ोर पड़ गए न?
मजबूतियाँ यहीं चाहिए थी सबसे ज्यादा
यही तो इम्तिहान था
कि तुम कितने सच्चे साथी हो...  
हम जुड़े हैं एक-दूसरे से
ये तो एक सच्चा सा सच है
फिर इसे क्यूँ झुठला रहे हो?
मुझे इतिहास बनाओगे या किस्सा?
अच्छा सुनो !
कुछ भी बनाओ..
ये तुम्हारा फैसला है
लेकिन फैसला तुम अकेले क्यूँ ले रहे हो ?
मेरा हक़ कहाँ गया?
रहने दो जाने कैसे तुम झूठ भी
सच कि तरह बोलते हो कि
यकीन आ जाता है....

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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