ये लो पापी
घूम रहे हैं
बन सत्संगी पहन
के चोला,
बिस्तर पर अस्मिता
रौंदते मुँह से
बोलते बम बम
भोला,
इनकी नज़र में
सब एक सामान
बच्ची, जवान या
पहने दुल्हन जोड़ा
शरीर औरत का
बन गया हैं
इनके घर का
खेल खिलौना,,
वक़्त कि धूल
जमा अतीत को
दाब दिए साधू
बनकर ,
बाबू बनकर घूम
रहे हैं दुनिया
भर के चोर
चकोरा,
हर रात महफ़िल
जमती हैं पीते
हैं जमकर मदिरा
संग कोका कोला,
इन धूर्त अय्याश व्यापारिओं
ने मंदिर का
भी न कोई
कोना छोड़ा,,
जमी हुई है
भीड़ वहीँ पर
सोच समझ सब
परलोक सिधारा,
मिले बिलखते भूखे बीमार
बुजुर्ग जब हर
घर का दरवाज़ा
खोला,
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 6/12/2013
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