Tuesday, December 17, 2013

तुम मेरे हर शब्द में हो..............

दो शब्द लिखा
फिर अटक गयी,
बैठ के संज्ञा पर विचार किया...
कलम इक कदम आगे बढ़ी
फिर रुक गयी!

बुनना शुरू किया
मैंने समय का हर पहर.....
कलम बढ़ी
फिर थक गयी!

समाज कि दशा को भापा,
बस्ती, शहर, गाँव में गयी
कलम चली
फिर आह! किया
और टूट गयी!

लेकिन फिर भी कविता अधूरी थी...
पंक्तिया बेभाव, बेमायने
नज़ाने किस और जा रही थी
हताश थी मेरी कविता..
अक्षर उलझ गए थे
अर्थ बीच में ही फस गया था 
शब्द का अभाव हो चला था
पन्ने बिगड़ रहे थे मुझपर...

मैं तुम्हे याद करने लगी
फिर क्या ?
कलम चलती गयी शब्द निरंतर रहे
कुछ मेरे शब्द कुछ तुम्हारे
मैं लिखती चली गयी बिना रुके........

कहा न मैंने तुम्हे
कि
तुम मेरे हर शब्द में हो!!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

 

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